रमदान (रमजान) का पाक महीना 13 अप्रैल से शुरू हो रहा है। रमदान को अरबी भाषा में रमदान भी कहा जाता है। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक नौंवा महीना रमदान का माना जाता है। इस पूरे महीने में मुस्लिम लोग व्रत यानी रोजा करते हैं और नमाज अता करते हैं। ये रोजा काफी कठिन माना जाता है। इसमें मुस्लिम सूर्योदय से पहले सहरी खाते हैं, फिर दिन भर पानी का घूंट या थूक भी नहीं निगलते हैं, सूर्यास्त के बाद रोजा इफ्तार करते हैं। चांद के हिसाब से गिने जाने वाले इस कैलेंडर में 29 या 30 दिन होते हैं। इस हिसाब से हर साल करीब 10 दिन कम होकर अगला रमदान का महीना शुरू होता है। रमदान का अंत ईद के साथ होता है, जो 29 वे रोजे के अंत के साथ आती है। चांद दिखने के आधार पर अगले दिन ईद के साथ रमदान खत्म होता हैं और ईद वाले दिन रोजे रखने की जरूरत नहीं होती है। पूरे मिडिल ईस्ट में मौजूद खाड़ी देशों में ईद 13 मई को मनाए जानी है, अंत में चांद दिखने पर ईद की तारीख तय होती है।
इस पूरे महीने भर लोग रोजे रखते हैं। पांचों वक्त की नमाज अदा करते हैं और पूरा दिन इबादत में गुजारते हैं। कुरान शरीफ की तिलावत करते हैं। रोजा रखने वाले रमदान के महीने में सहरी, इफ्तार और तरावीह के अनुसार भोजन करते हैं। सहरी खाने का वक्त सुबह सादिक (सूरज निकलने से करीब डेढ़ घंटे पहले का वक्त) होने से पहले का होता है। सहरी खाने के बाद रोजा शुरू हो जाता है। रोजेदार पूरे दिन कुछ भी खा और पी नहीं सकता। इस दौरान संबंध बनाने की भी मनाही है। शाम को तय वक्त पर इफ्तार कर रोजा खोला जाता है।
रात की इशा की नमाज (करीब 9 बजे) के बाद तरावीह की नमाज अदा की जाती है। इस दौरान मस्जिदों में कुरान भी पढ़ा जाता है। ये सिलसिला पूरे महीने चलता है। महीने के अंत में 29 का चांद होने पर ईद मनाई जाती है। 29 का चांद नहीं दिखने पर 30 रोजे पूरे कर अगले दिन ईद का जश्न मनाया जाता है। रमदान के महीने में शब-ए-कद्र मनाई जाती है। इस दिन मुस्लिम समुदाय रात भर जागकर इबादत करते हैं। रमदान के पाक महीने मे पांचों वक्त की नमाज अदा की जाती है।
रमदान में तरावीह की नमाज का खास महत्व है। जिसके लिए कुछ खास नियम भी हैं। तरावीह नमाज ईशा की नमाज के बाद होती है, इसमें 20 रकात नमाजें है। हर दो रकात के बाद सलाम फेरा जाता है। 10 सलाम में 20 रकात होती हैं। वहीं हर 4 रकात के बाद दुआ पढ़ी जाती है। जिसमें सभी नमाजी देश और समाज की सलामती, भाईचारे, रोजी-रोजगार आदि के लिए दुआ मांगते हैं।
एक नमाज में पांच बार दुआ पढ़ी जाती है। ईशा की नमाज को मिलाकर हर दिन 37 रकात नमाज पढ़ी जाती है। तरावीह नमाज को पढ़ने में एक से डेढ़ घंटे का समय लगता है। जिसे रमदान के हर दिन पढ़ना जरूरी है।
अगर कोई बीमार हो या बीमारी बढ़ने का डर हो तो रोजे से छूट मिलती है। हालांकि, ऐसा डॉक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए। मुसाफिर को, गर्भवती महिला को और बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को भी रोजे से छूट रहती है। बहुत ज्यादा बुजुर्ग शख्स को भी रोजे से दूर रह सकते हैं।
रोजे रखने का मकसद अल्लाह में यकीन को और गहरा करना और इबादत का शौक पैदा करना है। साथ ही सभी तरह के गुनाहों और गलत कामों से तौबा की जाती है। इसके अलावा, नेकी का काम करने को प्रेरित करना, लोगों से हमदर्दी रखना और खुद पर नियंत्रण रखने का जज्बा पैदा करना भी इसका हिस्सा है।
बता दें कि ईद 29वें रमदान का दिन डूबने के बाद और अगले दिन का चांद नजर आने पर अगले दिन चांद की पहली तारीख पर मनाई जाती है। इस्लाम धर्म में दो बार ईद मनाई जाती है। पहली मीठी ईद जिसे ईद उल-फितर कहते हैं और दूसरी बकरी ईद, जिसे ईद उल-जुहा कहा जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, ईद का त्योहार 10वें शव्वाल महीने के पहले दिन मनाया जाता है।
खाड़ी देशों सहित कई देशों में इस बार कोरोना महामारी के चलते रमदान को लेकर कई नियम बनाए गए हैं। जिसमें एक जगह इकठ्ठा होने को लेकर चेताया गया है, जकात को लेकर भी लोगों से विशेष आग्रह किया गया है। मिलने-जुलने को लेकर भी कई सारे नियम बनाए गए हैं। मस्जिदों में नमाज अता करने पर भी नियम बनाए गए हैं।
जल्द ही AlShorts आपके लिए रमदान से जुड़ी और भी जानकारी लेकर आएगा…