सत्ता की लालसा की कहानियां हमने दुनियाभर में देखी है, आज पूरी दुनिया के सामने डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump)इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं जिन्होंने सत्ता के लिए देश की अस्मिता के साथ समझौता किया। कैपिटल हिल (Capitol Hill) हमले में नाम आने के बाद ट्रम्प सुर्ख़ियों से गायब हो गए और कुछ दिनों के लिए एकांतवास में चले गए थे। हमने रूस में नवालनी (Navalny) की घटना भी देखी जहां सड़कों पर आंदोलनकारियों ने उनके समर्थन में प्रदर्शन किया। ठीक इसी तरह की आग से म्यांमार (Myanmar) जल रहा है। आज के मुद्दे पर म्यांमार की राजनैतिक अस्थिरता पर बात होगी। जिसमें यह बताया जाएगा कि आखिर 5.4 मिलियन की आबादी वाला देश क्यों जल रहा है?
पूरी दुनिया की निगाहें Myanmar के हालातों पर हैं, जहां कुछ हफ़्तों पहले सेना ने देश सर्वोच्च नेता आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi) को हिरासत में लेते हुए तख्तापलट की घोषणा कर दी। सेना यहां भी नहीं रुकी, इस पूरे मामले में कई लोगों की जान भी गई। जहां सत्ता परिवर्तन की घटना के बाद यहां के स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए, लोगों ने अपने देश की सेना के खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। इस खींचतान के बीच दुनियाभर के देशों ने म्यांमार सेना की आलोचना की है। आखिर यह माजरा क्या था जिसके चलते सेना को यह तख्तापलट अंजाम देना पड़ा? अपने नेताओं के लिए लोग सड़कों पर क्यों उतरे है? ऐसे ही कई सवाल आपके जहन में भी उठ रहे होंगे। इस ब्लॉग में AlShorts आपके सभी सवालों के जवाब लेकर आया है। आज हम आपको म्यांमार के हालातों से रूबरू करवाएंगे।
रिपोर्ट के अनुसार यहां साल 2011 में ही दमनकारी सैन्य नीति का दमन किया गया था। जिसके बाद तख्तापलट की घोषणा के बाद एक बार फिर आमजन में भय का माहौल पैदा हुआ है। बताया जाता है कि देश में संसद स्तर का आयोजन होने को था। ठीक इसी दिन आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi) और एक वक्त प्रतिबंधित रह चुकी उनकी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी (NLD) पार्टी को अपना कार्यकाल शुरू करना था, जिसके चलते संसद का सत्र बुलाया गया था। इस सत्र के आयोजित होने से पहले ही उन्हें और कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसके पीछे सेना का हाथ बताया गया था। इन सभी चीजों के पीछे कहीं ना कहीं मयंमार के संविधान की भी दुहाई दी जाती रही। यहां का संविधान कहता है कि संसद की सभी सीटों का एक चौथाई हिस्सा सेना के हाथों में रहेगा और देश के सबसे शक्तिशाली मंत्रालयों का नियंत्रित करने की गारंटी सेना को देता है। दरअसल, साल 2008 में एक संवैधानिक संशोधन किया गया जिसके तहत सेना के पास 25 फ़ीसदी सीटों का आधिकार होता है। साथ ही तीन अहम मंत्रालय- गृह, रक्षा और सीमाओं से जुड़े मामलों के मंत्रालय का अधिकार पूरी तरह से सेना के पास होता है।
बीते साल नवंबर में होने वाले चुनाव में आंग सान सू की पार्टी NLD को 80 फ़ीसदी वोट मिले। ये वोट आंग सान सू की सरकार पर रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के लगने वाले आरोपों के बावजूद मिले। उनकी पार्टी लगातार रोहिग्या मुसलमानों के विरोध में होने की बातें सामने आती रहीं हैं। इसके बाद सेना समर्थित पार्टी ने NLD पर चुनावों में धांधली का आरोप लगाया। इसके साथ ही कार्यकारी राष्ट्रपति मीएन स्वे ने बयान जारी करते हुए राजनीतिक संकट बताते हुए देश में आपातकाल लागू कर दिया था। उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग नवंबर माह में हुए हुए आम चुनाव में वोटर लिस्ट की बड़ी गड़बड़ियों को ठीक करने में असफ़ल रहा है। जानकारों के अनुसार, सेना तभी से NLD के नेताओं के पीछे लग चुकी थी। यहां आंग सान सू कि पार्टी ने चुनाव बेहद बड़े बहुमत से जीता था, अपनी हार को ना तो विपक्षी पार्टी यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवेलपमेंट पार्टी (USPD) पचा पाई ना खुद सेना। लेकिन NLD पर लगे चुनावी धांधली के आरोपों से जुड़े सबूत किसी के पास नहीं थे। हार जाने के बावजूद USPD में सेना की दखलंदाजी और अधिक बढ़ गई।
जानकारों की मानें तो कोई भी इस तख्तापलट के स्पष्ट कारण नहीं बता सकता है। राजनीति में फैले एक बेहद बड़े लूप हॉल के कारण ना कुछ भी कहना असंभव है। लेकिन सेना की दमनकारी नीतियों से हर कोई वाकिफ है। ऐसे में मुख्य तीन कारण रहे जसके चलते सेना ने तख्तापलट किया।
सेना ने देश के संविधान के अनुच्छेद 417 का हवाला दिया, जिसमें सेना को आपातकाल में सत्ता अपने हाथ में लेने की अनुमति हासिल है। जिसमें कहा गया कि कोरोना वायरस का संकट और नवंबर चुनाव कराने में सरकार का विफल रहना ही आपातकाल के कारण हैं। सेना ने 2008 में संविधान तैयार किया और चार्टर के तहत उसने लोकतंत्र, नागरिक शासन की कीमत पर सत्ता अपने हाथ में रखने का प्रावधान किया। मानवाधिकार समूहों ने इस अनुच्छेद को ”संभावित तख्तापलट की व्यवस्था करार दिया था।
संविधान में कैबिनेट के मुख्य मंत्रालय और संसद में 25 फीसदी सीट सेना के लिए आरक्षित है, जिससे नागरिक सरकार की शक्ति सीमित रह जाती है और इसमें सेना के समर्थन के बगैर चार्टर में संशोधन से इनकार किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस मसले की वजह अंदरूनी सैन्य राजनीति है, जो काफी अपारदर्शी है। जिसमें बताया गया है कि यह सेना द्वारा अपना प्रभुत्व स्थापित करने का एक तरीका भी हो सकता है। सेना ने उप राष्ट्रपति मींट स्वे को एक वर्ष के लिए सरकार का प्रमुख बनाया है, जो पहले सैन्य अधिकारी रह चुके हैं।
इसे पूरे मामले को लेकर दुनियाभर में म्यांमार (Myanmar) की सेना को आलोचना का शिकार होना पड़ा है। दरअसल, राजनीतिक लालसा के मद में सेना ने देश के लोगों को भी नजरअंदाज करना शुरू कर दिया है। ऐसे में सेना, पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों ने बीते दिनों ओपन फायर के जरिए सेना का विरोध कर रहे लोगों को मारना शुरू कर दिया। एक फरवरी को सेना के सत्ता अपने हाथों में लेने के बाद से न तो आंग सान सू की तरफ से और न ही राष्ट्रपति विन मिन की तरफ से कोई बयान आया है और न ही उन्हें सार्वजनिक तौर पर कहीं देखा गया है।