वर्तमान समय में दुनिया की आबादी का बड़ा हिस्सा इंटरनेट (Internet) का इस्तेमाल करता है। मोबाइल रिचार्ज (Mobile Reacharge) से लेकर बिजली का बिल (Electricity bill) जमा करने जैसे कामों में भी लोग इंटरनेट को तरजीह देते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इंटरनेट ने दुनिया का लगभग हर काम को आसान कर दिया है, लेकिन आप इंटरनेट की दुनिया के बारे में कितना जानते हैं? आज हम आपको इंटरनेट की अंधेरी दुनिया के बारे में बताएंगे, जिसे डार्क वेब (Dark Web) या डार्क नेट (Dark Net) कहा जाता है।
डार्क नेट (Dark Net) वो दुनिया है जो मौजूद तो है, लेकिन इस पर जाना हर किसी के बस की बात नहीं है। इसके जरिए हर उन गलत कार्यों को अंजाम दिया जाता है, जिसकी इजाजत सरकार नहीं देती है। आज इस ब्लॉग (Blog) के जरिए आप जाएंगे आखिर डार्क नेट का प्रयोग क्यों किया जाता है? यहां आप जानेंगे कि इंटरनेट की इस काली दुनिया में आम आदमी क्यों नहीं जा सकता? इसे हम परत-दर-परत कई उदाहरणों से समझेंगे। आप को मालूम ही होगा कई देशों में कुछ खास शब्दों पर मनाही है, जैसे एयरपोर्ट (Airport) पर आप बम या विस्फोटक से जुड़े शब्द नहीं बोल सकते। यहां तक कि इंटरनेट पर क्रोम या सफारी पर इन शब्दों को सर्च करने के दौरान भी गूगल (Google) वॉर्निग जारी करता है। लेकिन डार्क नेट एक ऐसी दुनिया है जहां अवैध (Illegal) चीजों की खोज से लेकर आप हर उस क्राइम (Crime) को आसानी से कर सकते हैं, जिसे हम सामान्य ब्राउज़र पर नहीं कर सकते। AlShorts हमेशा आपको नए मुद्दों और सामान्य जानकारियों से रूबरू करवाता आया है। हमारा उद्देश्य आप तक डार्क नेट की सही जानकारी पहुंचाना है, ताकि इसके पीछे हो रहे क्राइम से आप पहले ही सतर्क हो जाए।
दरअसल, जब हम गूगल (Google) या किसी अन्य ब्राउजर में कुछ भी सर्च करते हैं तो हमें तुरंत लाखों नतीजे मिल जाते हैं। हालांकि, यह पूरे इंटरनेट का सिर्फ 4 फीसदी हिस्सा है, जो 96 फीसदी सर्च रिजल्ट में नहीं दिखता है, वह डीप वेब (Deep Web) होता है। इसमें बैंक अकाउंट डिटेल, कंपनियों का डेटा और रिसर्च (Research) पेपर जैसी जानकारियां होती हैं। डीप वेब का ऐक्सेस उसी शख्स को मिलता है, जिसका उससे वास्ता होता है। मसलन, आपके बैंक अकाउंट के डिटेल या ब्लॉग के ड्राफ्ट को सिर्फ आप देख पाते हैं। ये चीजें ब्राउजर की सर्च में नहीं दिखतीं।
कुल मिलाकर, डीप वेब का एक बड़ा हिस्सा कानूनी है और इसका मकसद यूजर के हितों की हिफाजत करना है। इसी का एक छोटा हिस्सा डार्क नेट (Dark Net) है, जो साइबर अपराधियों की पनाहगार है। इसमें ड्रग्स का व्यापार (Drug trade) , मानव तस्करी (human trafficking) , अवैध हथियारों की खरीद-फरोख्त, अश्लील सामग्रियों से संबंधित वेबसाइट (Porn website), हत्या की सुपारी, हैकिंग (Hacking) के साथ डेबिट/क्रेडिट कार्ड जैसी संवेदनशील जानकारियां बेचने जैसे तमाम गैरकानूनी काम होते हैं।
साइबर क्राइम की भाषा में इंटरनेट (Internet) के उस हिस्से को ‘डार्क नेट’ (Dark net) कहा जाता है, जहां पहुंचना मुमकिन न हो। बता दें कि टॉर (tor), डिपनेर जैसे कई ब्राउजर ओनियन राउटर का इस्तेमाल करते हैं। हम जिन सामान्य ब्राउजरों का इस्तेमाल करते हैं वह बेवसाइट से सीधे जुड़े रहते हैं जबकि ओनियन राउटर एक के बाद एक सर्वर से जुड़ता चला जाता है, जिससे इसकी लेयर बढ़ जाती है और यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि अपराध कहां से हुआ है। अपराध होने पर पुलिस प्रॉक्सी या आईपी एड्रेस तक ट्रैस नहीं कर पाती है। साइबर एक्सपर्ट्स का कहना है कि डार्क नेट पर दो लोग बात भी करते हैं तो पुलिस इसे ट्रैप नहीं कर सकती है, ज्यादातर अपराधी ही इसका इस्तेमाल करते हैं।
कहा जाता है कि डार्क नेट अमेरिकी सरकार की देन है। नब्बे के दशक में अमेरिकी सेना ने जासूसी के लिए इसे बनाया था। डार्क नेट को बनाने का उद्देश्य सरकारी जासूसों द्वारा गुप्त तरीके से सूचनाओं का आदान प्रदान करना था। अमरीकी सेना ने यहां तक जाने के लिए Tor टेक्नोलॉजी विकसित की। कुछ ही वक़्त में Tor को पब्लिक डोमेन में रिलीज़ कर दिया गया, ताकि इसका इस्तेमाल सार्वजनिक हो सके। Tor के ज़रिए ही डार्क नेट तक पहुंचा जा सकता है। बता दें कि मौजूदा समय में Tor पर 30 हज़ार से ज़्यादा अदृश्य वेबसाइट हैं।
Tor एक सॉफ्टवेयर है, जो उपयोगकर्ता की पहचान और इंटरनेट गतिविधियों को ख़ुफ़िया एजेंसियों की नज़रों से बचाता है। यानी इसके ज़रिए इंटरनेट एक्टिविटी को ट्रेस नहीं किया जा सकता। लोग इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल अपना आईपी एड्रेस छिपाने के लिए करते हैं। Tor पर सर्फ़िंग के दौरान आप किसी यूज़र की सोशल मीडिया पोस्ट, ऑनलाइन एक्टिविटी, सर्च हिस्ट्री, वेबमेल किसी भी चीज़ का पता नहीं लगा सकते।
डार्क नेट की साइट्स को टॉर (द अनियन राउटर) एन्क्रिप्शन टूल की मदद से छिपा दिया जाता है, जिससे इन तक सामान्य सर्च इंजन से नहीं पहुंचा जा सकता। इन तक पहुंच बनाने के लिए एक विशेष टूल टॉर का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि इसमें एकल असुरक्षित सर्वर के विपरीत नोड्स के एक नेटवर्क का इस्तेमाल करते हुए परत-दर-परत डेटा का एन्क्रिप्शन होता है, जिससे इसके यूजर्स की गोपनीयता बनी रहती है।
सेंसरशिप से बचाव के लिए बंद समाज सबसे ज्यादा नियंत्रण या सेंसरशिप का सामना कर रहे लोग डार्क नेट का इस्तेमाल अपने समाज से बाहर के दूसरे इंसानों के साथ कम्यूनिकेशन के लिए कर सकते हैं। ग्लोबल लेवल पर विभिन्न देशों में सरकार द्वारा जासूसी और डेटा संग्रह के बारे में बढ़ रही अनियमितताओं के कारण खुले समाज के व्यक्तियों को भी डार्क नेट के इस्तेमाल में इंटरेस्ट हो सकता है। यह मुखबिरों और पत्रकारों के लिए संचार में गोपनीयता बनाए रखने तथा जानकारी लीक करने एवं स्थानांतरित करने के लिए उपयोगी है। हालांकि डार्क वेब पर संचालित गतिविधियों का एक बड़ा भाग अवैध है।
डार्क नेट एक लेवल की पहचान सुरक्षा प्रदान करता है, जो कि नॉर्मल नेट प्रदान नहीं करता है। डार्क नेट एक ब्लैक मार्केट की तरह है, जहां अवैध गतिविधियां संचालित होती हैं। पिछले दिनों क्रिमिनल्स किसी की नज़र में आने और पकड़े जाने से बचने के लिए अपनी पहचान छिपाने के मकसद से डार्क नेट की ओर बड़ी तादाद में अट्रैक्ट हुए हैं, इसलिए इस बात में हैरानी नहीं है कि कई चर्चित हैक और डेटा उल्लंघनों के मामले किसी-न-किसी तरह से डार्क नेट से संबद्ध पाए गए हैं। डार्क नेट की सापेक्ष अभेद्यता ने इसे ड्रग डीलर्स, हथियार तस्करों, चाइल्ड पोर्नोग्राफी संग्रहकर्ताओं के लिए एक प्रमुख जरिया बना दिया है।
यदि संभावित क्रेता की डार्क नेट पर ऐसी वेबसाइट्स तक पहुंच हो जाए तो इनके माध्यम से विलुप्तप्राय वन्यजीव से लेकर विस्फोटक सामग्री एवं किसी भी प्रकार के मादक पदार्थों की खरीद की जा सकती है। सिल्क रोड मार्केटप्लेस नामक वेबसाइट डार्क नेटवर्क का एक उदारहण है, जिस पर हथियारों सहित अलग-अलग तरह की अवैध वस्तुओं की खरीद एवं बिक्री की जाती थी। हालांकि इसे 2013 में सरकार द्वारा बंद करा दिया गया, पर इसने ऐसे कई अन्य बाजारों के उभार को इंस्पायर्ड किया। सक्रियतावादियों और क्रांतिकारियों द्वारा डार्क नेट का इस्तेमाल अपने संगठन के लिए किया जाता है, जहां सरकार द्वारा उनकी गतिविधियों की निगरानी या उन्हें पकड़े जाने का डर कम होता है।
आतंकवादियों गतिविधियों से जुड़े लोगों द्वारा डार्क नेट का इस्तेमाल अपने साथियों तक सूचनाओं के प्रसार, उनकी भर्ती और उनमें कट्टरता का प्रसार, अपने आतंकी विचारों के प्रचार-प्रसार, धन जुटाने व अपने कार्यों व हमलों के समन्वय के लिए किया जाता है। आतंकवादी बिटक्वाइन व अन्य क्रिप्टोकरेंसी जैसी आभासी मुद्राओं का इस्तेमाल करके विस्फोटक पदार्थों एवं हथियारों की अवैध खरीद के लिए भी डार्क नेट का इस्तेमाल करते हैं। सिक्योरिटी एक्सपट्रस का दावा है कि हैकिंग और धोखेबाजी में शामिल व्यक्ति डार्क वेब पर चर्चा मंचों के जरिए पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण और औद्योगिक नियंत्रण प्रणाली तक पहुंच की पेशकश करने लगे हैं, जो दुनियाभर के अहम अवसंरचनात्मक नेटवर्कों की सेफ्टी के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है।
डार्क वेब के अपराधियों तक जांच एजेंसियां भी तभी पहुंच पाती हैं, जब उस दुनिया का ही कोई शख्स उनकी मदद करता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में एक सायबर अपराधी ने बिना पेमेंट के ही डार्क वेब से ड्रग्स ऑर्डर कर दिया था। जब यह बात सेलर को पता चली तो उसने ड्रग्स के साथ उसके घर पर फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टीगेशन (FBI) भी भेज दी।
अमेरिका ने 2002 के आस-पास अपने जासूसों के साथ कम्युनिकेशन को सीक्रेट रखने के लिए tor बनाया। पहले यह सिस्टम सिर्फ मिलिट्री और गुप्त संस्थाओं के लिए ही था। अमेरिकी मिलिट्री (American military) ने बाद में ईरान (Iran) और दक्षिण कोरिया (South Korea) के बागियों को अमेरिकी सरकार (American government) के साथ सीक्रेट कम्युनिकेशन के लिए दे दिया। यहां से यह सिस्टम लीक होकर अपराधियों के हाथ लग गया। फिर बाद में tor ब्राउजर को आम लोगों के लिए भी लॉन्च कर दिया गया। अब दुनियाभर की सरकारें भी खुद को tor सिस्टम के सामने बेबस पाती हैं।
डार्क वेब से बचने का सबसे आसान तरीका है कि इससे दूर रहें। अगर कोई आम इंटरनेट यूजर गलती से डार्क वेब की दुनिया में चला जाता है तो यूं समझिए कि वह आंख पर पट्टी बांधकर बीच सड़क पर पहुंच गया है, जहां किसी भी तरफ से गाड़ी आकर उसे टक्कर मार सकती है। यहां हर वक्त हैकर घूमते रहते हैं, जो हमेशा नए शिकार की तलाश में रहते हैं। एक गलत क्लिक आपके बैंक अकाउंट डीटेल, सोशल मीडिया के साथ निजी फोटो और वीडियो उनके हवाले कर सकता है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि मौजूदा दौर में आप इंटरनेट (Internet) पर स्कॉल करते हुए अनजाने में भी डार्क नेट (Dark net) तक पहुंच सकते हैं। वहीं आपकी कुछ गलतियां या लापरवाही भी आपको इस अंधेरी दुनिया में धकेल सकती है। इसलिए जरूरी है कि आप कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखें।
किसी भी शॉपिंग साइट (Shopping site) का इस्तेमाल करने से पहले सुनिश्चित कर लें कि कहीं वह साइट फर्जी तो नहीं। सिक्यॉर सॉकेट्स लेयर (SSL) सर्टिफाइड साइट पर ही शॉपिंग करें। सिक्यॉर साइट्स पर आपके ब्राउजर के यूआरएल बॉक्स में ‘लॉक’ (ताले) का सिंबल होता है। वेबसाइट के लिंक में ‘https’ प्रोटोकॉल है या नहीं, इसकी भी जांच कर लें। एक्सपर्ट्स जोर देते हुए बताते हैं कि यहां s का मतलब सिक्यॉरिटी से होता है। शॉपिंग करते वक्त किसी भी साइट पर अपने कार्ड की डीटेल्स (Details) को सेव बिलकुल भी ना करें।
अनसिक्यॉर्ड या पब्लिक वाई-फाई (Wi-Fi) का इस्तेमाल करने से बचें, क्योंकि यह ऑनलाइन थेफ्ट का आसान निशाना होता हैं।
आईडेंटिटी थेफ्ट की आशंका को कम करने के लिए अपना पासवर्ड (Password) समय-समय पर बदलते रहें।
डार्क नेट द्वारा पैदा खतरों से निपटने के लिए दुनियाभर की सरकारों को अपने साइबर सेफ्टी ढांचे को मजबूत करना चाहिए और दुनियाभर के साइबर स्पेस की सेफ्टी के लिए सरकारों को खुफिया जानकारी, सूचना, तकनीकी और अनुभवों को साझा करते हुए एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए। इस क्रम में भारत को साइबर सेफ्टी (Cyber safety) की फील्ड में अनुसंधान और विकास और कर्मियों के प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण पर पर्याप्त निवेश करना चाहिए।
तो ये थी डार्क नेट (Dark net) से जुड़ी जानकारी, इस कड़ी में हम अगली बार आपके लिए लेकर आएंगे साइबर फ्रॉड (Cyber Fraud) से जुड़े रोचक तथ्य… जुड़े रहिए AlShorts के साथ।